Thursday, November 27, 2014

ये शाम कभी ना जाये कहीं

ये शाम कभी ना जाये कहीं

सुरों में डूबी, शहद जैसी

अल्फाज मेरे, आवाज तेरी

बहती रहें, कहानी कोई

जुबानी तेरी, लिखाई मेरी

ख़याल मेरे, पहचान तेरी



मिसरेह जो, बन आते हैं

इस तर्रन्नुम में घुल जाते है

चुस्कियाँ, लेके वो

तस्कियाँ, हम पाते हैं

एहतियात भरी, तह कर रखी

एहसास मेरे, सरगम तेरी



किस्मत हुई, ये निस्बत बनी

सूरज ढला, ये शाम उठी

और वक़्त बीता, फिर चाहत हुई

ये शाम कभी ना जाये कहीं

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