उफ़, एक और चौराहा
फिर कई रस्ते
बस एक फैसला
और बिछड़ना
चलो इन रास्तों को ही छोड़ दे
अब जरा भटक ले
लापरवाह दिशाओं में
थोड़ा दूर चल लें
आँखों में चाँद हो
सांसो में ठंडी हवा
बातें इस जग की हों
और तजुर्बे तेरे मेरे
नजरियों को काट के
वो जहां देखते रहें
जो हर दिन सजें
बिन तारीफ आशिक की
दुःख को खट्टा, सुख को मीठा
इमली बना चबाते रहे
वक्त की घूँघट खोल खोल
यादों को शर्मिंदा करे
कभी सोचा है
यूँ भटक के कैसा लगता है?
आज वही लिख रहा हूँ
अगर अच्छा लगे
तो आ जाना मेरे पास
रास्तों को अकेला छोड़ के
फिर कई रस्ते
बस एक फैसला
और बिछड़ना
चलो इन रास्तों को ही छोड़ दे
अब जरा भटक ले
लापरवाह दिशाओं में
थोड़ा दूर चल लें
आँखों में चाँद हो
सांसो में ठंडी हवा
बातें इस जग की हों
और तजुर्बे तेरे मेरे
नजरियों को काट के
वो जहां देखते रहें
जो हर दिन सजें
बिन तारीफ आशिक की
दुःख को खट्टा, सुख को मीठा
इमली बना चबाते रहे
वक्त की घूँघट खोल खोल
यादों को शर्मिंदा करे
कभी सोचा है
यूँ भटक के कैसा लगता है?
आज वही लिख रहा हूँ
अगर अच्छा लगे
तो आ जाना मेरे पास
रास्तों को अकेला छोड़ के
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