फिर से कलम तले
कागज रोंद रहा है ना
किसी नयी आजादी की
नज्मे बुन रहा है ना
कवि! कवि! कवि!
क्यों ना समझ पाता है तू
ये झूटी जमुरियत की लोरियाँ
सुन सो रहे है
ये उठेंगे नहीं
लो! फिर तू उन्हें जगाने की
कोशिश कर रहा है ना
उंगलिया तोड़ देंगे वो
जस्बात मरोड़ देंगे वो
सूली चढ़ा कर तुझे
अमर कर देंगे वो
अरे! बेवकूफ! तू फिर भी ये
उंगलिया चला रहा है ना
ये इंसान है डर तू
ये मिट्टी को भगवान बना
फिर उसे तबाह करते है
मसीहा बनाना आदत है इनकी
क्या! तू इन्हे बदलने की
कोशिश कर रहा है ना
वाह! कवि वाह!
बहुत हिम्मत है तुझमे
ये कविता जो पूरी करली तुमने
पर पता है तुझे, शायद नहीं
के तू भी उनसा ही निकला
देख! मेरे इतना माना करने पर भी
तूने इतनी सी भी सुनी ना
कागज रोंद रहा है ना
किसी नयी आजादी की
नज्मे बुन रहा है ना
कवि! कवि! कवि!
क्यों ना समझ पाता है तू
ये झूटी जमुरियत की लोरियाँ
सुन सो रहे है
ये उठेंगे नहीं
लो! फिर तू उन्हें जगाने की
कोशिश कर रहा है ना
उंगलिया तोड़ देंगे वो
जस्बात मरोड़ देंगे वो
सूली चढ़ा कर तुझे
अमर कर देंगे वो
अरे! बेवकूफ! तू फिर भी ये
उंगलिया चला रहा है ना
ये इंसान है डर तू
ये मिट्टी को भगवान बना
फिर उसे तबाह करते है
मसीहा बनाना आदत है इनकी
क्या! तू इन्हे बदलने की
कोशिश कर रहा है ना
वाह! कवि वाह!
बहुत हिम्मत है तुझमे
ये कविता जो पूरी करली तुमने
पर पता है तुझे, शायद नहीं
के तू भी उनसा ही निकला
देख! मेरे इतना माना करने पर भी
तूने इतनी सी भी सुनी ना
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