Saturday, November 29, 2014

मुंसफी अखाड़ा

ये तराजू कानून का
ये सूई इन्साफ की
क्यों इतनी टेढ़ी रही है ?

ये कटोरा पीड़ितों का
क्यों हमेशा भारी रहा है ?

और कटोरा कसूरवारों का
क्यों इतना खाली रहा है ?

कोई मिलावट कर रहा है
            या धांधली कही
कुछ तो गड़बड़ है
            कहाँ, पता नहीं

जंग लग गयी है
            पुर्जों में अब
हिलने में लगेंगे
            बरसों कई

इधर फाइल कुतर गया
            चूहा कोई
उधर रूह छूट गई
            फैसला नहीं

मुंतजिर आँखे है
            धूल झोकने को
संविधान इतना बड़ा
            ज्ञाता कोई नहीं

हाँ कुछ दावा करते है
            वकालत है पढ़ी
सफ़ेद कॉलर है उनके
            पर पोषक काली बनी

वैसे देखो तो ये कोर्ट
            मंदिर है
जो फरियाद यहाँ पूरी
            होती नहीं

पर आफत में यहाँ
            आते सब है
अंधे खुदा  के फैसले को
            मजलूम सभी

वैसे ये जम्हूरियत का
            मुंसफी अखाड़ा है
मुर्गेबाजी दो पैहलू कि
            एक क़ाज़ी फसा बेचारा है

ये न्याय का मेला लगता
            है कई रोज
पर बिकती यहाँ बस है
            आजादी



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