इस एकांत को बाजार
बहुत मुदत्तों ने बनाया था
उन तदबीरों की औलादें
आज तक वो किस्से गाती हैं
सामान, हराम, हलाल, बवाल,
क्या नहीं बिका
खपत, लगत और मुनाफे
के नाम पे
पर इनकी बढ़ती सड़क पे जकड से
किसी और बड़े बाजार की रफ़्तार थम रही थी
सो एक चादर फ्लाईओवर की बिछा दी
आज भी चमकीली रौशनी से
ये बाजार सजता है
पर पत्तंगे सब
ऊपर से ही उड़ जाते हैं
नीचे कुछ पलायन की
आधी लाशे भी रहती हैं
वो उन्हें भी
कुचल जाते हैं
मैं बहरहाल एक छोटा बाशिंदा ठहरा
तो नुक्सान की कीमत भी छोटी थी
मेरे आँगन में अब चाँद नहीं दीखता
जो अब वो जगह 'कंक्रीट' के खम्बे ने ले ली है।
बहुत मुदत्तों ने बनाया था
उन तदबीरों की औलादें
आज तक वो किस्से गाती हैं
सामान, हराम, हलाल, बवाल,
क्या नहीं बिका
खपत, लगत और मुनाफे
के नाम पे
पर इनकी बढ़ती सड़क पे जकड से
किसी और बड़े बाजार की रफ़्तार थम रही थी
सो एक चादर फ्लाईओवर की बिछा दी
आज भी चमकीली रौशनी से
ये बाजार सजता है
पर पत्तंगे सब
ऊपर से ही उड़ जाते हैं
नीचे कुछ पलायन की
आधी लाशे भी रहती हैं
वो उन्हें भी
कुचल जाते हैं
मैं बहरहाल एक छोटा बाशिंदा ठहरा
तो नुक्सान की कीमत भी छोटी थी
मेरे आँगन में अब चाँद नहीं दीखता
जो अब वो जगह 'कंक्रीट' के खम्बे ने ले ली है।
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