काल्पनिक दोस्त थे वो
जैसे रखो वैसे रहते थे वो
हम उनकी जुबां अपनी
जुबां से बाटते थे
जी वो खिलोने थे
खेलने के काम आते थे
ये बचपन की आदतें
बड़ी ख़राब है
जो जिधर भी देखूं
तो अब भी सब अपने
खिलौने ढूंढ रहें है
के टूट रहे है
या तोड़ रहे है
सब बोलते तो हैं
पर क्या बोलना है क्या नहीं?
ये अभी भी सीख रहे हैं
हाँ आज भी अपनी जुबान
बाटने पे अड़े हुए हैं
बस लगता है
के चलना सीख गए है
आँखों की पुतलियाँ खीच के झाकना`
तो अपने कुँए में गिरे हुए हैं
सम्हलना सीख रहे है
ये कैसी हालत है
कैसी बेकसी
बस इनके जिस्म बढ़े है
रूह छोटी
वो फुदकती है
गिर जाती है
ये रपाट खीच के मारते है
वो रोती है,
पर हर बार आंसू पोछ कर
फिर वही जिद करती है
"गोदी चढ़ना है, कोई तो उठा लो "
जैसे रखो वैसे रहते थे वो
हम उनकी जुबां अपनी
जुबां से बाटते थे
जी वो खिलोने थे
खेलने के काम आते थे
ये बचपन की आदतें
बड़ी ख़राब है
जो जिधर भी देखूं
तो अब भी सब अपने
खिलौने ढूंढ रहें है
के टूट रहे है
या तोड़ रहे है
सब बोलते तो हैं
पर क्या बोलना है क्या नहीं?
ये अभी भी सीख रहे हैं
हाँ आज भी अपनी जुबान
बाटने पे अड़े हुए हैं
बस लगता है
के चलना सीख गए है
आँखों की पुतलियाँ खीच के झाकना`
तो अपने कुँए में गिरे हुए हैं
सम्हलना सीख रहे है
ये कैसी हालत है
कैसी बेकसी
बस इनके जिस्म बढ़े है
रूह छोटी
वो फुदकती है
गिर जाती है
ये रपाट खीच के मारते है
वो रोती है,
पर हर बार आंसू पोछ कर
फिर वही जिद करती है
"गोदी चढ़ना है, कोई तो उठा लो "
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