इस साहित्य के मरघट में
न जाने कितने
मुर्दे गड़े है
इनकी खालें गलती नहीं
मांस इनका पिघलता नहीं
बस स्थिर पड़े है
जान भरता है कभी
पढ़ने वाला कोइ
अपने तजुर्बों की सांसे
देता है वही
मै इस कब्रिस्तान के चौकीदारों से छुप कर
ये जमी खोदा करता हूँ
उन बड़ी कब्रों के पीछे वाली
छोटी कच्ची कब्रें भी खोला करता हूँ
ठहाके मारते हैं
ये मुर्दे मुझपे
अपनी हिमाकतें याद करते है
शायद मुझे देख के
हर ढकती कब्र पे
मै अपना कुछ खो देता हूँ
सच कहूँ तो
मै पहले सा नहीं रहता हूँ
लोग कहते हैं
मेरे कागज पे मिट्टी के दाग हैं
शायद मेरे नाख़ून में फसी
उन कब्रों की खाक है
न जाने कितने
मुर्दे गड़े है
इनकी खालें गलती नहीं
मांस इनका पिघलता नहीं
बस स्थिर पड़े है
जान भरता है कभी
पढ़ने वाला कोइ
अपने तजुर्बों की सांसे
देता है वही
मै इस कब्रिस्तान के चौकीदारों से छुप कर
ये जमी खोदा करता हूँ
उन बड़ी कब्रों के पीछे वाली
छोटी कच्ची कब्रें भी खोला करता हूँ
ठहाके मारते हैं
ये मुर्दे मुझपे
अपनी हिमाकतें याद करते है
शायद मुझे देख के
हर ढकती कब्र पे
मै अपना कुछ खो देता हूँ
सच कहूँ तो
मै पहले सा नहीं रहता हूँ
लोग कहते हैं
मेरे कागज पे मिट्टी के दाग हैं
शायद मेरे नाख़ून में फसी
उन कब्रों की खाक है
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