Friday, October 17, 2014

इस गजल को आवाज ना मिली है

इस गजल को आवाज ना मिली है

तनहा यूँ महरूम ये रही है
ज़माने ने तवज्जुह ना दी है
जब भरी महफ़िल में तुमने कहा
के मुझमे वो बात नहीं है

इस गजल को आवाज ना मिली है

न जाने कब से मुन्तजिर पड़ी है
इस हिज्र के ज़िक्र को बयां कर रही है
हौसला खो बैठी है, तुम्हारे तंज से
के तुम्हारे बातो की बोली ये ज्यादा लगा बैठी है

इस गजल को आवाज ना मिली है

सुरों की पैहरान भी जो ना नसीब हुई इसे
ये रूठी है, थोड़ा टूटी है
जो तुम्हे इसे लबों से लगाना गवारा ना था
ये आँखे सुजा रात भर रोई है

 इस गजल को आवाज ना मिली है

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