Friday, October 17, 2014

चाँद - तारा

क्या सुनी है वो कहानी
अरे अपने चाँद की कहानी
लैला, मजनू, हीर, इन सब से भी पुरानी
हाँ हाँ तारों को कहानी

वो जमाना, जब धरती ने था पाला
एक चाँद और एक तारा
हाँ वो जमाना, जब था
बस एक ही तारा
धरती के इर्द गिर्द घूम के
दोनों ने अपना बचपन था काटा

एक शाम चाँद जवान हुआ
तारा के हुस्न पे फ़िदा हुआ
जब इश्क़-ए -इजहार हुआ
तो ये गुल गुलज़ार हुआ

फ़िलहाल ब्रम्हांड खुशहाल था
इस नए जोड़े पे निहाल था
पर फिर भी एक तबका बूढ़ी उल्काओं का
ना जाने क्यों परेशान था

रीत के रिवाज निकले
बिन बात के कुछ जात निकले
सुना फरमान अपनी मर्जी का
दोनों पे पैहरे लगा डाले

पर फिर भी एक शाम तारा आई
छुप कर चाँद से मिलने को
उस हाल बेहाल इश्क़ के रस से
सारी रात भिगोने को

नजर लगी, कोई निगाह पड़ी
किसी कोने से, गोली चली
एक उल्का यूँ तारा से भिड़ी
कतरा कतरा वो बिखर गयी

चाँद आज तक आता है
उसे याद करने को
इन तारों को बंटोरने को
उन्हें प्यार करने को

शायद इसी लिए कहते हैं

जब कोई छूट जाता है हमारा
उसे चाहता है कोई हमसे भी ज्यादा
बन जाता है वो एक तारा
उस चाँद का तारा, उस चाँद का प्यारा


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