तिरंगे, तेरे मान को
अपने कंधे, हर जीत पे लदे
मै कब तक चल पाउँगा
सोने, चांदी, ताम्बे
के पदक, के कवच, तो रहेंगे
पर ये सीने झुक जायेंगे
तेरी शब्जियत पे
तेरे बागवे सिंदूर पे
तेरे स्वेत स्वछता पे
नाज तो बहुत है मुझे
पर तेरे चक्र को लादता अभिमन्यु
इस चक्रव्यूह में कब तक जी पायेगा
मुझे पांडव होने पे गर्व नहीं
ना कौरवों से भेद
पर क्या ये अनेक कभी एक हो पाएंगे
मेरी आँखों में ये भारत
महाभारत ह, एक युद्ध नहीं
पर क्या भविष्य ये सपने देख पायेगा
मैंने थामा है तुझे जिंदगी भर
मेरे बाद भी तुझे कोई थामेगा
पर तूने मुझे अब ना थामा
तो मै शायद और ना जी पाउँगा
अपने कंधे, हर जीत पे लदे
मै कब तक चल पाउँगा
सोने, चांदी, ताम्बे
के पदक, के कवच, तो रहेंगे
पर ये सीने झुक जायेंगे
तेरी शब्जियत पे
तेरे बागवे सिंदूर पे
तेरे स्वेत स्वछता पे
नाज तो बहुत है मुझे
पर तेरे चक्र को लादता अभिमन्यु
इस चक्रव्यूह में कब तक जी पायेगा
मुझे पांडव होने पे गर्व नहीं
ना कौरवों से भेद
पर क्या ये अनेक कभी एक हो पाएंगे
मेरी आँखों में ये भारत
महाभारत ह, एक युद्ध नहीं
पर क्या भविष्य ये सपने देख पायेगा
मैंने थामा है तुझे जिंदगी भर
मेरे बाद भी तुझे कोई थामेगा
पर तूने मुझे अब ना थामा
तो मै शायद और ना जी पाउँगा
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