Monday, October 20, 2014

शमशान

जब मै अपने सर की काली जवानी
    उतार के नदी में बहाने जा रहा था

जी तो बहुत चाहा की उसकी
    कुछ जिंदगी खरीद लू बदले में

फिर बगल में जलती शमशान
   की भट्टी को देख याद आया

की आज शाम तक ये नदी
  उसे भी राख बना ले जाएगी

फिर एक जाती लहर के साथ, वो नदी,
  मेरा पैर खीच, रौब दिखती मालकिन सा बोली

" यहाँ सौदा नहीं वक़्त चल रहा है
   ये चूल्हा शमशान का
       यूँ ही मेरा पेट भरता रहेगा
लोइयों सा नाजुक तू कब तक जियेगा
   आज वो सिका है कल तू सिकेगा
       चल जा यहाँ से, वक़्त बहुत हो रहा है"

सुन मै, बोल वो, कछ शांत हुए
    मुड़, पलटे कदम, उसे बोल आया

" आऊंगा किसी रोज, बनने रोटी तेरे खुराक का
     कुछ लहरों बाद मिलने, साथ देने`इस यार का
 
फ़िलहाल तब तक को, कर विदा, अलविदा"


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