मेरे आँगन आई थी एक गिलहरी आज
दुपक फुदक के लांग कूद के
ढूंढ रही थी कुछ खास
कोने में पड़े एक कूड़ेदान में
झुक के, चख के, कुछ लिया उठा
लौट पड़ी वो, थी जब लांगने को दिवार
मैंने उसे टोक दिया
सच्चे मन से आग्रह किया
"और ले लो जो भी ले जा रही हो
छुप छुप कर मत आया करो
क्यों इतना घबरा रही हो?"
वो पलट के बोली " माफ़ करना
ले लेती तेरा सामान, बेहिचक, बेपरवाह
पर है जमाना बहुत ख़राब
शरीफों के लीबाज बिकते है अब, मुफ्त काले बाजार
भरोसा बेच आई हूँ, चंद लम्हा जिंदगी बढ़ने को
दुपक फुदक के लांग कूद के
ढूंढ रही थी कुछ खास
कोने में पड़े एक कूड़ेदान में
झुक के, चख के, कुछ लिया उठा
लौट पड़ी वो, थी जब लांगने को दिवार
मैंने उसे टोक दिया
सच्चे मन से आग्रह किया
"और ले लो जो भी ले जा रही हो
छुप छुप कर मत आया करो
क्यों इतना घबरा रही हो?"
वो पलट के बोली " माफ़ करना
ले लेती तेरा सामान, बेहिचक, बेपरवाह
पर है जमाना बहुत ख़राब
शरीफों के लीबाज बिकते है अब, मुफ्त काले बाजार
भरोसा बेच आई हूँ, चंद लम्हा जिंदगी बढ़ने को
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