आलस ओढ़े सो रहा हूँ
अब जगाना ना मुझे
ज़माने से रूठा रो रहा हूँ
अब मनना ना मुझे
गम नहीं उस शिकस्त का
जो दी एक अनजान ने मुझे
अफ़सोस तो उन तंज का है
जो करी मेरे अपनों ने मुझपे
अब जगाना ना मुझे
ज़माने से रूठा रो रहा हूँ
अब मनना ना मुझे
गम नहीं उस शिकस्त का
जो दी एक अनजान ने मुझे
अफ़सोस तो उन तंज का है
जो करी मेरे अपनों ने मुझपे
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