Sunday, September 7, 2014

मौत के सौदागर


बी - बीवी
प - पति
अ -एजेंट
अ २ - दूसरा एजेंट


                                                                      प्रथम 

(पति कमरे में बैठ कर कविताये पढ़ रहा होता है । बीवी कमरे में आती है )

बी - ये कब  तक इन किताबों में सर खपाओगे मन ऊब नहीं जाता

प - (जवाब नही देता )

बी - पता नहीं कैसे पढ़ लेते हो इतना सब। इतना पढ़ते हो अच्छी बात है पर इससे कोई फयदा ।

प - (जवाब नही देता )

बी - कवि साहब! कभी घर के काम में भी थोड़ी रूचि दिखा दिया करो। अच्छा! आज शाम को गाड़ी निकाल लेना सामान लेने जाना है। कल फिर समय नहीं मिलेगा। आपको अपने क्लब से फुरसत नहीं होगी।

प - और तुमको अपनी किटी से।

बी - वाह! इतनी देर से मै बकबक कर रही हूँ तब तो एक आवाज नहीं आई और जब निकली तो सिर्फ मरी बुराई करने को।

प - बुराई नहीं कटाक्ष।

बी - अपनी कविताओ की भाषा में मुझे मत फासओ और मेरी बातों पर जरा ध्यान दो। अच्छा! उस जीवन बीमा का क्या हुआ। पिछले तीन हफ़्तों से चार एजेंट आ चुके है। कुछ काम बना।

प - (जवाब नही देता )

बी - (गुस्सा हो के ) अब पूछ रही हूँ तो बताओगे नहीं। पता है आस पडोस में सबने कोई ना कोई पालिसी ले ली है। हर किटी में सब अपने होने वाले मुनाफे के बारे में बात करते हैं।

प - मतलब सब अपने पति के मरने की कामना करते हैं?

बी - देखा फिर जब मुह खुला तो मेरी बुराई के लिए और बोलोगे की कटाक्ष कर रहा था।

प - ये कटाक्ष नहीं, सवाल था।

बी - सुनो मुझे इससे कोई फरक नहीं पड़ता की तुम कटाक्ष कर रहे हो या सवाल। मुझे बस इतना बताओ की तुम पालिसी कब ले रहे हो।

प - अरे! पालिसी लेने से पहले उसे समझना पड़ता है, उसके फायदे नुकसान देखने पढ़ते हैं। तब ली जाती है पालिसी।

बी- तीन हफ्ते से तुम्हारा ये स्वयंवर चल रहा है, तुमको एक भी पालिसी पसंद नहीं आई।

प- वैसे ये कटाक्ष भी था और सवाल भी। मेरी संगती का असर पड़ रहा है।

बी- उफ़! तुम बातें न पलटो। मुझे इतनी समझ नहीं है, पर मै इतना जानती हूँ की ये फायदेमंद है। जैसे हम लोग किटी मै पांच पांच सो जमा कर के साल में एक बार ढेर सारा पैसा कमाते है। वैसे ही इस बीमा में भी पैसे जमा कर के कमाए जाते है।

प - हाँ हाँ! तुमने पहले भी बताया है ये सब, आज एक और एजेंट आने वाला है। उसकी पालिसी देखने के बाद पक्का कोई पालिसी ले लूंगा कल तक, सोच के। अब जरा बेगम जी! एक चाय दे दीजिये।

बी- कवि साहब! घर में दूध नहीं है। जा कर किराने से ले आओ। चाय तुरंत मिल जाएगी।

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                                                                         द्वितीय 

( पति ड्राइंग रूम में बैठ कर कविताये पढ़ रहा होता है । बीवी अंदर टीवी देख रही होती है। एजेंट आता है।)

(घंटी बजती है)

बी - देखो जरा कौन है।

प - (जवाब नही देता )

(घंटी फिर बजती है)

बी - (गुस्से में) तुम फिर अपनी दुनिया में गुम गए। एक दरवाजा भी ना खोला गया तुमसे।
(दरवाजा खोलती है )

अ - नमस्ते । मै LIC से आया हू। मिस्टर गुरुकांत कृष्णा जी ने बुलाया था ।

बी - हाँ हाँ आइये बैठिये ।

प- (कविताओं में गुम )

बी - ये LIC से आये है । बीमा बनाने के लिए।

 प- (कविताओं में गुम )

बी - कवि साहब! (जोर से)

प - हाँ  हाँ

बी - LIC! बीमा!

प - हेलो

अ - जी नमस्ते मेरा नाम सतीश तिवारी है। अपने मुझे फ़ोन किया था जीवन बीमा बनाने के लिए।

प - जीवन बीमा की जानकारी के लिए।

अ - हाँ  हाँ सब एक ही बात है। अब जब मै आ ही गया हूँ तो आपको और तकल्लुफ नहीं होने दूंगा। आज ही सारा काम निपटा दूंगा।

प- अभी तो सिर्फ जानकारी ही चाहिए। वैसे असली तकलीफ तो क़िस्त देते समय पता चलती है।

अ- क़िस्त तो छोटी छोटी होती है जनाब, यूँ यूँ निकल जाएगी। वैसे भी आप तो पक्की नौकरी वाले है। आप तो आराम से क़िस्त निकाल लेंगे और मुनाफा भी कमा लेंगे।

प - अगर आपकी कंपनी ने कुछ छोड़ा तो।

अ - अच्छा ये बात छोड़िये। ये बताइये आप किस प्रकार की कवितायेँ लिखते हैं। प्राकृतिक, सामाजिक, छायावाद?

प - कविताये लिखना बस एक सौख है। जिंदगी जीने के लिए इन कविताओं की क़िस्त जमा करता हूँ। ठीक जैसे की आप मेरे मरने की क़िस्त भरवाना चाहते हैं।

अ - (झेंपते हुए) अच्छा अच्छा, जी जी, ( बीवी की और ध्यान केंद्रित करते हुए) और भाभीजी एक चीज बोलना चाहूंगा आपसे, आपके यहाँ के परदे बहुत अच्छे है, red is my favorite color |

बी - ये मेरी मम्मी की पसंद है। वो मेरी बहुत मदद करती है सामान खरीदने में (पति की और पैनी नजरो से देखते हुए)

अ - मुझे लग ही रहा था की घर के बड़े बुजुर्ग की ही पसंद होगी। वैसे आप दोनों कहाँ के रहने वाले है?

बी - जी हम दोनों ही लखनऊ के रहने वाले है।

अ - अरे वाह! लखनऊ तो बहुत ही हसीन शहर है, नवाबों की नगरी। मेरी मौसी वहा रहती हैं। वहा के कबाब बहुत लज़ीज़ होते है। अपने तो खाए ही होंगे।

प - हम vegetarian  हैं ।

अ - तो रबड़ी तो खाई ही होगी। चारबाग स्टेशन के पास वाली गली तो सिर्फ उसी लिए famous है।

प - हमे मिटा ज्यादा पसंद नहीं।

बी- (बात सम्हालते हुए) मैंने खाया है। मम्मी पिछले हफ्ते ही लखनऊ से ले कर आई थी। अरे! मैंने आपसे पानी भी नहीं पुछा।  मै अभी राबड़ी और पानी ले कर आती हूँ। (पति की ओर घूरते हुए अंदर जाती है)

प - आपको कैसा लगता है ये नौकरी कर के।

अ -  जी बहुत अच्छा लगता है। पर हाँ आपकी सरकारी नौकरी से ज्यादा नहीं। ऊपर से कवि।

प - आपको झूट भी बहुत बोलना होता होगा, क्यों ।

अ - जी क्या मतलब?

प - मतलब की हम आपके लिए एक customer हैं और हम लोगो को लुभाना आपका काम। हमको लुभाने के लिए आप हर कोशिश करते है, जिसमे झूट बोलना भी शामिल है। (बीवी पानी और रबड़ी ले कर आती है) जैसे की पालिसी में बाते छुपाना और एक अनजान कंपनी के लिए फायदा करना। एक कवि की नजर बोलूं तो आप एक मौत के सौदागर लगते हैं।

(एजेंट भौचका होता है, फिर शांत हो कर एक रबड़ी उठा कर खाता है। थोड़ा भावुक हो कर फिर बोलता है)

अ - अपने खूब पहचाना मुझे। शायद ये पेशा अब मेरे वजूद का प्रतिबिम्ब बन गया है। (कुर्सी से उठ कर ) मै एक जीवन बीमा का एजेंट, दर दर लोगों के घर जा के, दरवाजे खटखटा के उनसे उनके मरने की सम्भावनाओ की बोली लगवाता हूँ । उस बोली की कमीशन भी मिलती है मुझे। मै मौत का सौदागर हूँ। (दर्शकों की और मुह करके) एक बार ऐसा ही सौदा किया था मैंने। वो भी पक्का सौदा जिसमे लागत भि मेरी थी और मुनाफा भी मेरा, यहाँ तक की कमीशन भी मेरी  थी जनाब। पर कभी सोचा भी ना था की वो सौदा टूट भी सकता है। और जब टूटा तो साथ साथ मेरी बेटी भी ले गया। जनाब उसे कैंसर था। ब्लड कैंसर। हर दिन chemotherapy से गलते हुए उसे देखता था मै। पहले उसके बाल गए, फिर नाख़ून नीले पड़ के गिर गए, वो चिड़चिड़ी भी हुई बुझती हुई लौ की तरह, और फिर एक दिन बुझ गयी। जानते है कितने रुपये दिए इन बीमा वालों ने। सात लाख, जी जनाब सात लाख। चिता भी ना जलाई गयी उनसे।

(कुछ देर सन्नाटे के बाद)

बी - माफ़ कीजियेगा, ये थोड़ा सख़्त बाते बोल देते है।

प - मेरा प्रयास आपको ठेस पहुचना नहीं था। मै माफ़ी मांगता हूँ। अगर आपको ठीक लगे तो हम लोग कल बीमा के बारे में बात कर सकते हैं। आज आप घर चले जाइए।

अ - (अपने आप को सम्हाल कर ) जी`आप लोगो को माफ़ी मांगने की जरूरत नहीं है। और जो भी हुआ वो बीत चूका है, मै अब उस सदमे को पीछे छोड़ चूका हूँ। मै खोने का दर्द समझता हूँ। ये बीमा कभी भी  मेरा आपका दर्द नहीं भर सकता । बस शायद किसी जरूरत के समय आपकी मदद कर दे। मै पालिसी को ले कर आपकी आशंकाओं को समझ सकता हूँ। मुझे आप थोड़ा  वक़्त दीजिये मै पूरी कोशिश करूँगा की आपको कोई नुकसान न हो।

प - अगर आपको कोई दिकत ना हो तो मै बेशक आपकी पालिसी देखना चाहूंगा।

अ - ये तो मेरा पेश है इसमे क्या दिक्कत।  आइये, मेरे पास दो जबरदस्त पालिसी है, जीवन रक्षा और जीवन आनंद, मेरे हिशाब से आपके लिए जीवन रक्षा ज्यादा अच्छी होगी।

बी - मै चाय बना कर लती हूँ ।

( दोनों बैठ कर पालिसी पर चर्चा करते है। बिवी चाय बनाती है। चाय लाती है। पालिसी के बारे में सुनती है । सब सहमत होते है। सब हस्ते है । )

अ - तो मै परसो आपका चेक जमा कर दूंगा और आपका बीमा चालू हो जायेगा। मुबारक हो आप दोनों को ।

प - जी शुक्रिया।

अ-(दरवाजे की और जाते हुए) भाभीजी अगली बार जब आपकी मम्मी जी आये तो मुझसे जरूर मिलवाइयेगा ।

बी - जरूर भाई साहब ।

अ- मै चलता हूँ, नमस्ते ।

बी , प - नमस्ते ।

(बहार निकलते ही एजेंट सतीश तिवारी दूसरे एजेंट से मिलते है, दोनों स्टेज के एक कोने में जाते है। दूसरी तरफ पति और पत्नी आपस में बाते करते है )

अ २ - क्या हुआ, मामला बना की नहीं ।

अ - बस बन ही गया ।

अ २ - अरे कैसे पिछले हफ्ते मै यहाँ आया था पर वो आदमी बहुत खूसट था । जरा भी नहीं फसा ।

अ - अरे मुझे भी ब्रम्हास्त्र इस्तेमाल करना पड़ा, ऐसे वैसे थोड़े ही पट गया।

अ २ - (हस्ते हुए) इस बार किसको मार कर आये हो। 

अ - चल पहले कमीशन लेते है फिर बार चल के अच्छे से बताऊंगा ।

(दोनों चले जाते है)

(साथसाथ, स्टेज के दूसरे कोने में, पति कुछ देर तक पत्नी से बात करता है फिर अपने कमरे में जा कर कुछ सोचता है। फिर कुछ लिख कर कुश होता है। दर्शकों की और आ कर बोलता है )

प -  हर रास चख कर देखा मैंने
           हर स्वाद एक सा पाया

       जब विष चखने चला मै
           हर स्वाद एक सा पाया













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