Tuesday, March 17, 2015

ये रिश्ते

ये रिश्ते पहरन हैं

हर बार रगड़ने से चमकेगे नहीं

फट जायेंगे

मुझे मेरे तालीम की फ़िक्र बना दे

मुझे मेरे तालीम की फ़िक्र बना दे
हाँ मेरी पहचान से मेरा जिक्र करा दे

मुझे इन्सां से इन्सां का फर्क बता दे
इन बेबुनियाद अफवाहों का तर्क समझा दे

इस जहन्नुम से जन्नत के हलक फसी जमी
ये जमी को इस खराश से निजाद दिला दे

हाँ मेरे खुदा बस इतनी सी हरकत करा दे
मुझे मेरे तालीम की फ़िक्र बना दे

सुकून

सब कुछ भी जान के
               इतना उदास है
इस मन में नजाने
              कितनी प्यास है

आधा गिलास पि कर कहे
             आधा ही बाकी है
और बाकि आधा भरने की
            हिम्मत भी लानी है

सांसे लूँ के, गला सूखे
             ये भी परेशानी है
बेवजह वजह ढूंढने की
              इसकी बीमारी है

फ़िक्रों की मजलिस में
              दिन भर जब रोया
शाम को बारिश की बूँद पे
              गिलास ले दौड़ा है

हाथों से फिसल के
             ये मौका जो टुटा है
वो चुपचाप जा कर फिर
             सुकून में सोया है