Tuesday, January 26, 2016

अकेली है

मौत की मौत
             मौत है

मौत की जिंदगी
जिंदगी की मौत
            मौत है

बस जिंदगी की जिन्दाजी
            अकेली है

काली सादी तस्वीर

एक काली सादी तस्वीर तुम हो
एक काली सादी तस्वीर मैं

जिसे महीने लगते हैं
कलाकार को

एक झटजा लगता है
रौशनी को

और जिंदगी लगती है
मेरे जेहेन को

हमेशा की तरह

जहाज के मस्तूल को पकडे
         जो आदमी खड़ा है

   वो क्या सोच रहा है

क्या उसने हवाओं पर कब्ज़ा कर लिया है
या उसने हवाओं पर भरोसा कर लिया है

जो भी हों
उसकी उमीदें टूटने वाली है

हमेशा की तरह

इतिहास

इतिहास
रोटी पर जले हुए काले धब्बे सा होता है
जो विजेता के बगल में बैठे चापलूस ने सेका होता है
मुद्दा बनाने के लिए
चापलूसों को रोटी दिलाने के लिए

क्यों नहीं लिखता कोई
उस अकेली सुबह का इतिहास
जो हर दिन जंगल में घूमने आती है

या उस ठंडी हवा में सूखती कमीज पर
जो सूखते सूखते सूख जाती है

या उस आदमी पे
जो आजादी नहीं चाहता था
और आजादी के दिन मारा गया

क्या इतिहास इतना अधूरा है
के अधूरी चीजे उसमे कभी न पूरी हो पाए

या इतिहास पूरी हुई चीजों का संकलन है
जहां अधूरी चीजों की जगह नहीं

मुझे पता नहीं
आप ही बताइयेगा
अपने इतिहास में
नमस्कार

ओये ज्यादा सोच मत

ओये ज्यादा सोच मत
    चेहरा कट के गिर जायेगा

तू इंसान हो जायेगा
    जिंदगी में जिन्दा हो जायेगा

जय जवान जय किसान

सरहद पर एक जवान खड़ा है
ताकि मैं सो सकूँ , सुकून से

ठीक जैसे
एक लैम्पपोस्ट खड़ा रहता है
हर दिन मेरे घर के बहार
ताकि मै सड़क को देख सकूँ

एक किशान भी कहीं
ऐसे ही किसी लैम्पपोस्ट से लटका होगा
और उसके पैर की मझली ऊँगली
जमीन को भूकी होगी

क्योकि मैं तो भूखा नहीं हूँ
और मेरा पेट भरने वाले
भूखा रहना चाहते नहीं

क्योकि धर्म के बाद उपवास की
किसी को आदत नहीं

सरहद का जवान कभी भी ये सोचता होगा क्या ?

उसे भी पता है
अगले सावन
जब सरहद बाड़ में अपना रूख बदलेगी
तब वो लैम्पपोस्ट फिर काम आएगा
कोई लटकेगा या लटकाया जायेगा

वैसे सुना के आज बाजार तीन अंक गिर गया
और मैंने महसूस करा की एक किसान सरहद पर मर गया
और छू कर के देख भी लिया एक जवान को अकेले खड़े खेत में

जय जवान
          जय किसान

कारावास

कारागार कारीगरों की मजबूरी है
       अपरादियों की नहीं

अपराधी को अपराध का पता है
       कारीगर को कारावास का नहीं

जीते जीते

मैं

मैं वो हूँ,
जो मरने के लिए पैदा हुआ है

और हर दिन मरता है
धिरे धीरे

मैं वो हूँ
जो जिन ज्यादा चाहता है
और ज्यादा जीने के लिए जीता है

यूँ तो आसान है भूल जाना ये सब
जीते जीते

सहूलिया है
          जी लीजिये

मगर
    भुला देना
    मिटा देना नहीं होता

Wednesday, January 20, 2016

प्रोफेसर

एक दराज में वो प्रोफेसर रहता था
ठीक वैसे जैसे तुम्हारी वो डुप्लीकेट चाभी
                       या वो जरूरी वाला कागजात
जिसे तुम कब का भूल चुके हो
पर ये जानते हो
               के किसी दिन वो बहुत काम आएगा 

भुला देने की वजह हो चूका हूँ

मेरी आँखों में आसु थे
उसकी हाथों में ठंडी हवा
जो पोत दिया उसने मेरे चहरे पे

मेरे होठ ठंडे पड़ चुके हैं
थरथरा रहे हैं

जैसे बर्फ में पेड़ बादल हो जाते हैं
ऐसे ही कुछ, में किसी का ख्याल हो चूका हूँ
भुला देने की वजह हो चूका हूँ

बड़ा ही मासूम ख्याल है

बड़ा ही मासूम ख्याल है
भीगी हुई रुई सा
आटों की लोई सा
शीशों पे पटकी गई
रौशनी के छर्रों सा

बड़ा ही मासूम ख्याल है
जैसे पानी में कूदा कुछ
पट से, पर दिखा नहीं
मै ढूँढता हूँ
हिलकोरा तो उठा होगा ना कहीं

बड़ा ही मासूम ख्याल है
साहब! बस मैंने उसे पकड़ा नहीं
ना जाने क्यों जाने दिया
साला जेब कुतर गया
मै अभी तक खड़ा वहीँ

बड़ा ही मासूम ख्याल है
कह गया था ग़ालिब कभी
मेरे कानो में अब फुसफुसाहट है
शेरों की, ग़ज़लों की
कबूतरों की, गुटरगूँ की

बड़ा ही मासूम ख्याल है 

Tuesday, January 19, 2016

राग : मेरे घर का

किचन के चूल्हे पर गरम होते दूध से
बाथरूम में रखे छोटे नीले टब तक
उसका विशाल सम्राज्य कायम है

मेरे चौड़े गद्दों का सिंघासन
जहाँ मै कभी कूदता था
या आलास में सुबह से मुह चुराता था
वह अब उस नवाब का अखाडा है
और, मै और मेरी प्यारी तकिया उसके कोने
वैसे गौर करने की बात ये भी है की
इस कोने को अब अंगड़ाई लेने की भी आजादी नहीं है

रंगे काले बालों वाली बूढी नानी
अपने घुटने का दर्द भूल कर, मुस्कुराती है
नीदें खट्टी करती है
पर नाना को फ़िक्र नहीं है
या फ़िक्र है उसे चोट लग जाने की
"अरे! देखो कहीं गिर ना जाएँ"

उसकी माँ, मेरी जनम की दुश्मन
कहती है " ये बिलकुल नहीं रोता"
और याद दिलाती है माँ को
की मै कितना रोया करता था
हुँह! उसे क्या पता नवाबी
रोना तानाशाही का मूलमंत्र है
पर सच कहूँ , ये महाराज तो हस्ते भी नापतोल के हैं
ज्यादा चालाक हैं

मुझे अफ़सोस नहीं
के उसके आँख का एक आंसू
मेरी रात भर की नींद से ज्यादा भारी है
मुझे बस बीच-बीच में याद आता है
वो सम्राज्य, जिसका युग खत्म हो चूका है
और उस तानाशाह की
जो अब इस साम्राज्य में
एक पहरेदार मात्र है


* राग  मेरे भांजे का नाम है जिसके लिये ये कविता लिखी गयी है।