Wednesday, November 9, 2016

एकांतवास

एक आदमी पर्वत के एकदम नीचे,
पत्थर पे, पत्थर से, पत्थर की भाषा लिख रहा है
लिख रहा है पत्थर को ,
एक पत्थर सी भाषा में।

पत्थर जो अगर काटे जायें,
जोड़े जायें, तो बन सकते हैं ईमारत तक।
कड़े जबड़ों की ईमारत
ईमारत पर्वत सी
जिसे वो पर्वतारोही
चढ़ रहा है
पढ़ रहा है
धीरे धीरे

आज सुबह ही उसने
गरम किया है अपना नाश्ता
पत्थर के चूल्हे पर लकड़ियों से
लकड़िया, जिन्होंने सीखा है
पत्थरों को काट के उगना

वो भी कुछ ऐसा ही सीखना चाहता है
सीख रहा है
उसकी उँगलियों पर पत्थर के स्वाद हैं

पर्वत को चढ़ना
ईमारत को चढ़ने जैसा है
जिसकी आखरी मंजिल तक पहुचना
जिंदगी भर का काम है
मंजिल चोटी है
चोटी तक पहुचने की सनक
सिर्फ पर्वतारोही समझ सकता है

पत्थरों पे पत्थरों से टिकी चोटी
जिसके सारे कोण को समझ कर वो
चढ़ जाना चाहता है
पर्वत को
और महसूस करना चाहता है
एकांत जो इन पत्थरों ने नसीब किया है
एक दूसरे पर चढ़ के
एकांत पत्थर सा

उसने बांध ली है पेटी
जिसका वजन कमर से एड़ी
और एड़ी से जमीन तक फैला हुआ है
वो चढ़ रहा है उस जगह तक
जहाँ जंगल के जानवर
इंसानो से डरते नहीं
वो बोलते रहते हैं अपनी अपनी भाषा
जिन्हें वो समझता नही
वैसे वो अब इंसानो की भाषा भी नहीं समझता
पत्थर की भाषा जो सीख रहा है

वो जानता है पत्थर से पत्थर टकराने की आवाज
आवाज भाषा नहीं है
पतली मिटटी जो पानी संग बह जाएगी
पत्थर की भाषा का पतन है
मट्टी जो बनेगी गेंहू, आटा, आदमी और आदमी की भाषा
पर पत्थर की भाषा नहीं
पत्थर की भाषा
पत्थर में है।

इमारत की आखिरी मंजिल पर बैठा
वो आदमी जानता है की
कितना कठिन है
पत्थरों की इस भाषा को सीखना
इसे सीखने में
उसकी उँगलियाँ जुबान हो चुकी हैं
फेफड़े पतली हवा ले चूल्हे हो चुके हैं
और टखने हो चुके हैं पत्थर

वो चोटी पे बैठा आदमी
देख रहा है दुनिया को दूसरे कोण से
और बोल रहा है
पत्थरों की भाषा
जिसे कोई नहीं सुन सकता
                      समझ सकता