Sunday, March 27, 2016

तेरे चेहरे की वो बदनाम गली

वो पतली सी लकीर
जो नाक के कोने से
टंग जाती है होंठ के कोने तक

वो मुस्कान नहीं है
पर तेरे चहरे पे रहती है
खुसी सी, हसीन लगती है

मांझे सी रगड़ती है
सरकटी नागिन सी बिलखती है
जब भी तु बोलती है

ये वो गली है
जहां हर आँसू फिसल जाता है

बड़ी बदनाम गली है
जो इसे आजतक कोई नाम नहीं मिला है

कोई तो बात है
शायद वहाँ कोई शायर रहता है

जो पड़ताल लेता है तेरे हर आँसू की
और लेता है आराम भरी अँगड़ाइयाँ तेरी मुस्कानों में

वो अपना पता बताने से डरता है
शायद इसी लिए ये गाली शायरी में लापता है


कांच

जो कांच तोड़ रहे हो
तो उसे चिरका के मत छोड़ जाना
थोड़ा हौसला बनाना
और कांच पूरा तोड़ जाना

के दरारें उम्मीदें टिकाए रखती हैं
उम्मीदें खाली बड़ी बेकार होती हैं
नजर वालों को नज़ारे दिखती हैं
पूरे साबुत कांच की

तो अगर जाना
तो एक एक टुकड़ा तोड़ के जाना

क्योंकि अगर जो नजर में पड़ गए
वो नज़ारे पूरे जरूर होंगे

अधूरे खाली रौशनदान में
कांच फिर से होंगे

ये बूढ़ा क्यों पगलता है

वो धुन वाला, खाली कमरे में बैठे
सफेेद बालों के साथ
अपनी बनाई हुई एक पुरानी धुन सुन रहा है
मुस्कुरा रहा है

जैसे वो लंगड़ाता बूढ़ा मजदूर
अपनी जवानी में रखी हुई ईटों को
जवान देखता है
याद करता है
के पीछे वाली खिड़की पे रखी बीम ने
कितने दिन लिए थे घुटने टेकने में

वो मुस्कुरा रहा है
उसे देख, उंगली पकड़े उसका पोता
हस रहा है
कि इतनी सजी ईमारत के पीछे आ कर
इस खिड़की को देख
ये बूढ़ा क्यों पगलता है

वैसे आज वही पोता
मुस्कुरा रहा है
अपनी वो धुन सुन के
जिसके आखरी सुर को उसने भारी कर दिया था
अपने बूढ़े की मौत पर

वैसे एक पोता और भी है
जो हर बार दरवाजे की आड़ से
अपने धुनवाले बूढ़े को देखता है
और सोचता है
कि हमेशा यही धुन सुन कर
ये बूढ़ा क्यों पगलता है 

Tuesday, March 1, 2016

चोरी चोरी रात

कोरी कोढ़ी
          बोरी बोरी रात
नकचढ़ी निगोड़ी
          चोरी चोरी रात

खत फाड़ के भी ना पढ़ा
पता था क्या लिखी थी बात

सड़क से खुरच जाएगी
पर फिर भी निकली वो नंगे पाव

कोरी कोढ़ी
          बोरी बोरी रात
नकचढ़ी निगोड़ी
          चोरी चोरी रात

आढ़ी टेढ़ी, नंगी पुंगी
ऐसे गोरी सर्दी गिरी उस साल

उल्लू ने भी सपना देखा
उस रात पहली बार 

कोरी कोढ़ी
          बोरी बोरी रात
नकचढ़ी निगोड़ी
          चोरी चोरी रात

वहां कुछ बूंदो ने

वो आँखों का कोना हैना
जहां तुम्हारा काजल थोड़ा फैला रहता है
साझ की तरह

वहां कुछ बूंदो ने
घर बना लिया है
शायद मौसम बदल गया है
सावन आ गया है

मैंने तब से पलके नहीं झपकाई
बेचारों की बस्ती टूट जाएगी 
और उन्हें शेहेर बदलना पड़ेगा
तुम्हारी तरह