Monday, December 28, 2015

खादी

सच्चाई तो बस अब खादी के कुर्तों में बची है
उन्हें पहनने वाले तो कब के खाद हो चुके 

यीशु का हल

मैं 'कान्वेंट एडुकेटेड' कौआ 
'असेंबली' मे काँव काँव करता

उसकी तरफ देखता
वो भी उदास दिखता
जैसे बाहें छुड़ा के भागना चाहता हों
पर ना जाने क्यों उसे एक हल पर टाक दिया गया है

वो झुर्रियों वाली सिस्टर कहती थी
के वो गड़ेरिया है, यीशु है, मसीहा है
"उसने सबका पाप ढोया
इतना ढोया के उसे मरना पड़ा।"

पर मै फिर भी परेशान
आखिर ये गड़ेरिया हल क्यों ढो रहा है ?
भला हल कहाँ का पाप होता है ?
जरूर वो किसान है
मेरे गाओं वाले ताऊ जी की तरह
जो हर शाम कंधे पे हल रखे
ना जाने कौन सा पाप लाद लाते थे
और अपने गुड़ से भीगे, राख से चिपके, होठों से कहते थे
"आजकल खेतों से हल गायब हो रहें हैं
ट्रेक्टर जो आ गए हैं
वो जमीन को बारीकी से चबा लेते हैं"

वैसे आजकल सुनता हूँ
के खेतों से किसान भी गायब हो रहे हैं
लगता है उन्हें भी हलों पर टाका जा रहा है
मसीहा बनाया जा रहा है
पर ना जाने क्यों वो कहीं दिखते नहीं
ठीक मेरे गाँव वाले ताऊ जी की तरह!

मैं छलांग लगाऊंगा

साले! प्लास्टिक से लोग,

जिन्हे तुम जलाओ और मै फूंकु गा

खुद को, ऊपर उठाऊँगा
और ऊपर उठाऊँगा

जहां ये शहर एड़ी के नीचे दबा होगा
और मै पेड़ों की जालियों से कूद
छलांग लगाऊंगा
चाँद तक

यार! अब ये जहाँ अपना नहीं लगता

तो इस लिए चाँद की गोरी मिट्टी पे
अपना जहाँ बनाउंगा

और देखूंगा इस शहर को
फुन्सी से फोड़ा, और
फोड़े से मवाद
बनते हुए

Thursday, December 24, 2015

तनख्वा वाले लोग

मै हमेशा अपनी कम उम्र निगाह से उम्मीद उड़ेल कर उन्हें तक देखता था

"वो ही मेरे हीरो हैं"

क्योकि मै बड़ा हो चूका था और पता था की भगवान एक चिपटी तस्वीर के ज्यादा कुछ नहीं

वो हर जगह रास्ता दिखाते रहते थे

"उधर नहीं इधर, ऊपर नहीं नीचे"

"गिनती कितनी भी आसमान में करो पर नोट हमेशा हथेली पर ही रहते हैं "

मै मानता था की वो भविष्य बता रहे हैं, अरे! वो ज्यादा जानते हैं

पर जब मै खुद वहां पंहुचा तो पता चला की वो बस ज्यादा जी चुके थे

जानते नहीं थे

क्योकि इतना जी के भी मैं खुद ज्यादा नहीं जानता

बस देखता हूँ तो उम्मीद भरी जवान निगाहें जो बहुत कुछ जान सकती हैं

पर मुझे तक रहीं है