Monday, May 8, 2017

परसाई की कहानियों का आदमी - नंबर १

समाज में कुछ लोग अच्छे भी होते हैं । समूचे जग में तमाम आडंबर के बीच एक छोटा तबका इन अच्छे आदमियों का भी होता हैं। ये आदमी स्वाभाव से कैसे भी हों दिल से अच्छे ही होते हैं । किसी का बुरा नहीं चाहते , या यूँ भी कहा जा सकता हैं की ये सबका अच्छा चाहते हैं । उनको लगातार एक सनक सी होती हैं समाज को सुधरने की , अंत तक मदद करते जाने की। ये उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है, पाखंड नहीं। वह अक्सर फकड हालत में पाए जाते हैं। कुछ अलग से, विलक्षण।जीवन यापन दूसरों की दया पर, आभार पर। पर उनके जुझारूपन में यह सब कुछ छुप सा जाता है । लोगो की नजर में कभी वो पागल होते हैं , कभी एक आसान शिकार होते हैं तो कभी स्वार्थी तक हो जाते हैं। वैसे ऐसे व्यक्ति स्वार्थी तो होते ही हैं, बिना स्वार्थ कोई अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारियों को छोड़ समाज के बारे में इतना नहीं सोच सकता।

ऐसे आदमी हरिशंकर परसाई की कई कहनियों के प्रमुख पात्र रहे हैं। ये कहानियाँ व्यक्ति प्रमुख होती हैं। इनमे नायक का लम्बा परिचय होता हैं और कई किस्सों और छुट पुट कहानियों से उसके व्यक्तित्व को समझाया जाता है। ये व्यक्ति स्वाभाव से आक्रमक या सहज दोनों हो सकता है मगर उसके स्वाभाव के नीचे एक असंतोष छुपा रहता है , जो रह रह कर कभी कभी प्रकट भी होता है। इस नायक को बिना नाम दिए "असहमत " में परसाई ने बड़ी खूबी से रेखांकित किया है। नायक की असहमति ही उसकी पहचान है और सहमत होता व्यक्ति उसकी असहमति का शिकार है। हर एक सहमति दूसरी आसहमति हो जन्म देती है और ये प्रक्रिया चलती रहती है। जबतक असहमत सहमत नहीं हो जाता और सहमत असहमत। यह सब जानते हुए भी परसाई ऐसे व्यक्तियों के लिए सहानभूति रखते हैं।उनकी कहानियों में ऐसे व्यक्ति उन्हें अक्सर अपाहिज कर देते हैं जिन्हे वह न चाहते हुए भी मदद करते रहते हैं। मिसाल के तोर पे  "पुराना खिलाड़ी" रचना में परसाई एक घटना को कुछ यूँ बताते हैं  -

 " एक दिन वह अचानक आ गया था। पहले से बिना बताए, बिना घंटी बजाए, बिना पुकारे, वह दरवाजा खोलकर घुसा और कुर्सी पर बैठ गया। बदतमीजी पर मुझे गुस्सा आया था। बाद में समझ गया कि इसने बदतमीजी का अधिकार इसलिए हासिल कर लिया है कि वह अपने काम से मेरे पास नहीं आता। देश के काम से आता है। जो देश का काम करता है, उसे थोड़ी बदतमीजी का हक है। देश-सेवा थोड़ी बदतमीजी के बिना शोभा नहीं देती।"

"पुराना खिलाड़ी " महज मुलाकातों तक सीमित नहीं रहता, वो परसाई के घर पर बिना किराए चार माह रहता हैं और जाते जाते उनसे कुछ नकद पैसे भी ले जाता हैं। परसाई इन सब के बवजूद अपने व्यंग्य से उसका समर्थन करते ही दीखते हैं। ऐसे व्यक्तियों के लिए विशेष स्थान हैं परसाई की नजरों में। इसकी वजह शायद उस व्यक्ति की असन्तुस्टी ही हैं जो उसे बार बार निरस्वार्थ सामाजिक चिंतन को मजबूर करती हैं। ऐसे व्यहवार के पीछे कोई आर्थिक स्वार्थ नहीं छुपा। इसी लिए शायद परसाई उनके अलहड़पन को वो निर्विरोध स्वीकारते हैं। मेरी नजर में परसाई के ऐसे बर्ताव की एक और वजह भी हो सकती है। ऐसे निष्पक्ष किरदार अपनी असन्तुस्टी से परसाई के आतंरिक मनोभाव का प्रतिनिधित्व करते हैं। परसाई के लेखों से अगर व्यंग्य निकाल कर देखा जाएँ तो ये असन्तुस्टी साफ़ दिखाई देती है। इसे यु भी कह सकते हैं की महज परसाई का व्यंग ही उन्हें उनके इस नायकों से अलग करता हैं। परसाई खुद को ऐसे किरदार से काफी करीब पाते हैं । या शायद परसाई खुद ही वो किरदार हैं ।

परसाई इन किरदार का व्यंग्यात्मक रूप से एक और पहलु भी प्रस्तुत करते हैं। वो दिखाते हैं की कैसे यह आदमी अपने विचारों से अपने आस पास के लोगों को परेशान कर देता हैं। "मनीषी जी" भी एक ऐसे ही किरदार हैं। वो सिद्धांतो के पक्के हैं और समाजसुधार के लिए प्रतिबद्ध। मगर उनके भी कई प्रयास लोगो को अखरते हैं ।

"एक बार अनाथालय से भागी हुई तीन-चार तिरस्कृत और लांछित लड़कियाँ मनीषी के आश्रम में आई । मनीषी ने उन्हें 'धर्मपुत्री' मान लिया। दो चार दिन में उनके यहाँ 'धर्मपुत्र' भी आने लगे और जब इन 'धर्मपुत्रों' ने उनकी 'धर्मपुत्रियों' को 'धर्मपत्नियाँ' बनाने का उपकर्म किया तो मुहल्लेवालों ने बड़ा हल्ला-गुल्ला मचाया । वो लड़कियाँ 'धर्मपिता' को छोड़कर भागीं । अभी भी मनीषी बड़े दर्द से धर्मपुत्रियों को याद करते हैं। "

" मनीषी जी" जैसे नायक बार बार "रामदास ", "वह क्या था ", " निठल्लेपन का दर्शन " जैसी अनेक कहानियों में उठ आते हैं।ऐसे मिले जुले निरूपण से परसाई की कहानियाँ अंत में अपने इन नायकों के बारे में कुछ ऐसा छाप छोड़ती हैं जहाँ उनके लिए सहानभूति भी होती हैं और उनके रवैये से छटपटाहट भी।

हरिशंकर परसाई, हिंदी साहित्य में दोधारी तलवार के सबसे सक्षम योद्धा हैं। उनका व्यंग्य ही इसका प्रमाण हैं। उनकी कहानियों में किरदार सफ़ेद या काले रंग में दिखाए जाते हैं। पर उनके साहित्य का भूरा रंग देखने के लिए सम्पूर्ण साहित्य को एक साथ देखना जरूरी हैं। इस लेख में मैंने उनकी रंगावली के सफ़ेद किरदारों को छूने की कोशिश की हैं।

यह लेख परसाई की कहानियों में उजागर होने वाले किरदारों का चरित्र विश्लेषण करने का एक प्रयास हैं। ये विश्लेषण उनकी लघु कथात्मक व्यंग्य रचनाओं से प्रभुत्वता प्रेरित हैं। इन लेखों को मैं एक क्रमबद्ध तरीके से प्रकाशित करूँगा। उम्मीद करता हूँ की आपको इस शृंखला का ये पहला लेख पसंद आएगा। धन्यवाद।




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