Monday, May 8, 2017

धरोहर - मुक्तिबोध

जीवन, मृत्यु । मुक्तिबोध। एक कवि, साहस से परपूर्ण, जीवन के करीब, गरीब, कठिनाइयों से जूझते, अनुभवों में  लथपथ। गजानन माधव मुक्तिबोध एक विराट साहित्य के स्वामी थे । उन्होंने अपने साहित्यिक कार्य काल में खुदको एक कवि, कथाकार और व्यंगकार के रूप में स्थापित किया । अपने बहुत से विषयों को उन्हों ने दोनों कविता और लघु कहानियों का आकर दिया । 'अँधेरे में ' इसका उत्तम उदहारण है । ये उनके प्रयोगवाद का एक अंश है ।अपने वक़्त से भिन उन्होंने कई  प्रयोग किये, नये लेखन को तराशा, बिम्बों को विभिन मतलब दिए और साहित्य की सीमाओं को बढ़ाया । एक जगह बनाई जहां उनके लोग हैं, विचार हैं, उनकी प्रयोगशाला है । वो प्रयोगशाला जो पिछले पांच दशकों से हिंदी साहित्य को ईधन प्रदान कर रही है ।

मुक्तिबोध की कवितायेँ सत्य के कई पहलु दिखाती हैं । ऐसे पहलु जो सोचे नहीं गए और अगर सोचे गये तो विमर्ष से दूर रहे । वो विषय की जटिलता को उभारते हैं । कैसे एक गरीबी, गरीबी से ज्यादा जिंदगी है और जिंदगी में जिन्दा रहने से ज्यादा और कितनी सी चीजे जरूरी है । ये रोजमर्रा का संघर्ष अलग - अलग स्तरों पे उपस्थित है। उनका काव्यनायक इन छोटी छोटी अपूर्ण अभिलाषाओं को एक सार्थक स्वरुप है । मुक्तिबोध अपनी कविताओं में ऐसी पेचीदगी को सुलझाते हैं, उलझाते हैं, कठपुतलियों सा नचा के एक आवाज उठाते हैं , विरोध की। वो दोष नहीं देते, विकल्प तलाशतें हैं। शायद इसी लिए वो सत्य के सरलीकरण के प्रतिकूल थे। सरलीकरण जो सत्य को अधूरा और नतीजों को अँधा बनता है । इस कारणवर्ष कई बार उनकी रचना निष्कर्षहीनता और व्यग्रता का आभास देती लगती हैं । मगर वो आकारहीन नहीं है । वो साभिप्राय, विषय के कई चेहरों पे रोशनी डाल उसका सामान्यीकरण करते हैं । एक सतह तैयार करते हैं वैचारिक विमर्श की, अतिक्रमण नहीं । फलस्वरूप उनकी कविताओं का महाकाव्य होना अनिवार्य है । इसी लिए उन्होंने लम्बी कवितायेँ लिखने का साहस  करा, उस युग में जहां छोटी कविताओं का बोलबाला था । अभिवक्ति से आत्मसंघर्ष को व्यक्त करा ।

उनका काव्यबोध विस्तृत है । गहरा है । उनकी कविता एक ही बिम्ब के कई निष्कर्षों को छूते जाती है और हर निष्कर्ष उस बिम्ब का नया मतलब उजागर करता है । जैसे चित्र के ऊपर चित्र, अर्थ के ऊपर अर्थ, एहसास के ऊपर एहसास रख दिए गए हो बिना मिलाए । ये एक अनूठी कल्पना का घर तैयार करती है । मुक्तिबोध इस कला के माहिर कारीगर थे । अलगाव, उदासीनता, विद्रोह, विमर्ष और निजिता उनकी कविता की पांच उंगलियाँ है, मुट्ठी है । एक मध्य वर्ग जुझारू कर्मी की मुट्ठी ।

   मुक्तिबोध की कवितायेँ खुदरी है, काली है मगर कठोर नहीं । परिपक्वता से भरी, एक जटिल समय में, इस्पात के पुरुष की । जिसमे उथल पुथल है समाज की, इंसान के दिमाग में बवंडर सी । अनुबूतियां जीवन की हर दिन घटने वाली, करीब रहने वाली । मुक्तिबोध शृजनात्मक हैं । प्रयोगवादी हैं । नवोन्मेषों से उत्सुक, अविष्कारों का स्वागत करते हैं । भविष्य को ले कर आशावादी है । विद्रोही हैं । बहुमुखी सत्य हैं ।

   हमे आज के वक़्त में मुक्तिबोध के जैसे संतुलित नजरियों की जरूरत है । मुक्तिबोध को और समझना है । विमर्श करना है । इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए मै उनकी कुछ कविताओं को इस संकलन से जोड़ रहा हूँ । उम्मीद करता हूं की आप लोग इसे नए रूप देंगे ।



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