Monday, May 8, 2017

धरोहर - शमशेर बहादुर सिंह

हर बारिश में दो तरह की बूंदे होती हैं, एक मोटी भारी सी जो सीधे हवाओं को चीर कर जमीं पर पटक जाती है और दूसरी नन्ही हलकी लेहराहती सी, जो चुपके से आ, बैठ कर, गुदगुदाती है।  शमशेर की कवितायेँ कुछ ऐसी ही हलकी बूंदो सा अपने पाठकों को छूती है। उनके जिस्म में एक रूह के होने का एहसास दिलाती। उन लम्हों का एहसास दिलाती, जिन्हे जिया तो गया है पर जेहेन के किसी कोने में मुड़े टुडे कागज सा फेक दिया गया है।  उनमे दर्द है। एकालाप है । और बहुत सी गूंज । 

शमशेर बहादूर सिंह, एक ऐसे कवि थे जो समाज से ज्यादा जिंदगी और जिंदगी से ज्यादा खुद के करीब की कवितायेँ लिखते थे । वो अपनी कविताओं को काफी निजी रखते थे । इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि साहित्य से इतने लम्बे जुड़ाव के बावजूद भी उनका उनकी कविताओं का पहला संख्लन १९५६ में प्रकाशित हुआ। वो मानते थे की कला एक निजी अनुबूति है, प्रचार की चीज नही। उनकी इस निजीपन की परछाईं उनकी कविताओं में साफ़ देखि जा सकती है।

"मैं समाज तो नहीं; न मैं कुल
            जीवन;
कण-समूह में हूँ मैं केवल
            एक कण।
- कौन सहारा!
            मेरा कौन सहारा!
"

 इसी एकाकीपन का नतीजा है की उनकी कविताओं में एक ऐसा दर्पण मिलता है जिससे हर कोई जुड़ पाता है। उनकी अभिव्यक्ति की सरलता, विशय की गंभीरता और अर्थ की गहराई उनके अनुभवों की विशालता का परिमाप देती है। उनकी पंक्तियाँ "टूटी हुई बिखरी हुई " है, मगर अधूरी नहीं । उनमे दर्द है निराशा नहीं । अवसाद है अवसान नहीं । उनमे बारीकी है । प्रेम है । वो मांगती है मगर छीनती नहीं ।

"हाँ, तुम मुझसे प्रेम करो जैसे मछलियाँ लहरों से करती हैं
           ...जिनमें वह फँसने नहीं आतीं,
जैसे हवाएँ मेरे सीने से करती हैं
           जिसको वह गहराई तक दबा नहीं पातीं,
तुम मुझसे प्रेम करो जैसे मैं तुमसे करता हूँ।"


अपनी कविताओं में शमशेर कभी "एक आदमी दो पहाड़ों को कुहनियों से ठेलता" सुबह को शाम से मिलाता, तो कभी काल से होड़ लेता जीतता हारता, कभी चलता है "लेकर सीधा नारा", तो कभी गाता है "अमन का राग" बाहों में दुनिया को बांधते हुए। उनके अंदर का सहज प्रेम उनके मार्क्सवादी आक्रोश के साथ प्रतिवाद नहीं करता। दोनों बल्कि मखमली रेशम की तरह एक दूसरे में बारीकी से घुल-मिल कर एक सुनेहरा दृश्य बनाते है। शमशेर विचारों से प्रगतिशील थे और आदत से प्रयोगवादी। उनकी कई कविताओं में 'इम्प्रेशनिस्म' और 'सुर्रियलिस्म' की प्रचूड़ता है । " दिन किशमिशी रेशमी गोरा " जैसी कविता में दिन का ऐसा चित्रण इंसान के मानसिक इन्द्रियों के बटवारे को नाही सिर्फ झगझोरता है बल्कि उसकी सोच को भी मरोड़ता है । वहीं  "बैल" जैसी कविता में, नीरस समाज पे गुस्सति, तरस खाती हालातों पर बड़े सहजता से टिपड़ी की है । उनकी कविताओं में जिंदगी के उन छोटे मगर गहरे लम्हों का इतना सुन्दर दृश्य स्थापित करती हैं के कभी कभी विश्वास नहीं होता के इन भावनाओं की इतनी सरलता से भी व्याख्या की जा सकती है।

शमशेर हिंदी और उर्दू के बीच की वो समतल जमीन है जहा की हरी गीली घास पर बेझिझक दौड़ा जा सकता है | उनकि दोनों भाषाओं की कमान हमें ये छूट देती है। ये घुलिमिली सी जुबान उनकी कल्पना को और भी उजागर करती है। शमशेर की कविताओं में कोई पछपात नहीं है। किसी विचारों का आभाव नहीं है। अगर कुछ है तो बस कला, रंग, राग और एक आवाज। आवाज जो चिल्लाती नहीं, समझाती नहीं। एक आभास देती है। शमशेर की कार्यशाला में आइने हैं, बहुत से आइने, जो सिर्फ बिम्ब नहीं बनाते, वो कैनवास भी हैं, या शायद शमशेर खुद!
"आईनो, रोशनाई में घुल जाओ और आसमान में
           मुझे लिखो और मुझे पढ़ो।
आईनो, मुसकराओ और मुझे मार डालो।
आईनो, मैं तुम्‍हारी जिंदगी हूँ।"

शमशेर एक चौड़े पाट वाली बहती नदी हैं जिसका श्रोत निराला और मुक्तिबोध में है मगर कोई छोर नहीं। वो एक खुला महासागर हैं, जिनके कोनो को नापना अभी बाकि है। शमशेर अद्वितीय हैं। शमशेर अतुलनीय हैं। क्योकि शमशेर सहज भी हैं, तो शमसेर प्रगतिशील भी हैं, शमशेर में मार्क्सवाद भी हैं, तो एक अकेलापन, जिंदगी से नजदीकी भी। इसके चलते शमशेर को किसी कठघरे में बाटना मुमकिन नहीं । मुझे लगता है, अगर साहित्य के इतने बटवारे के बाद, कोई जमीन बचती है, अंटार्टिका सी, जहां किसी का राज्य नहीं। तो शायद वहां शमशेर हैं। एक कवि कविताओं का । सिर्फ और सिर्फ कविताओं का । जिसको सिर्फ उसी की रचना से समझा जा सकता है।


कवि घंघोल देता है
    व्यक्तियों के जल
हिला-मिला देता
      कई दर्पनों के जल
जिसका दर्शन हमें
    शांत कर देता है
और गंभीर
अन्त में।

इस संकलन में शमशेर को समेट पाना नामुमकिन है। इतने से कागज में शायद उनकी परछाईं ही अट पायेगी और यही मेरी कोशिश है। उनके शब्दों के बीच की दरारों में , पंक्तियों से बटी खाइयों में, अर्थ की तलाश में उतरना मुश्किल भी है और रोमांचकारी भी।  उम्मीद करता हूँ आप उसे महसूस कर पाएंगे।


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