Monday, February 22, 2016

हरा पत्ता

दिन गरम होता है । स्कूल की छुट्टी की तरह । उसने अपने गलों से महसूस करा था हर दिन । और जिस दिन ऐसा नहीं होता उस दिन जरूर कुछ अलग होता है, खुश होने के लिए । जैसे की बारिश । पर आज का दिन अचानक से गरम हो गया था, पिछले कुछ दिनों के मुकाबले । ये साल का वो वक़्त था जब स्कूलवाले स्कूल की यूनिफार्म के विषय में शंशय में रहते थे । उसने कोट तो पहन रखा था मगर सर्दी का नमो निशान नहीं था । पर क्योकि छुट्टी के विपरीत स्कूल की अस्सेम्ब्ली ठंडी रहा करती थी तो कोट  पेहेनना भी जरूरी था। ये कोट वैसे बड़े होने की पहचान सा देता था जिसे वो हर बार पहनते और उतारते समय महसूस करा करता था। सर्दिया पसंद थी उसे मगर सर्दियों का जाना नहीं। सर्दियों के लिए वो जुखाम तक झेलने को तैयार था। मगर इस गरम छुट्टी में कोट काफी भरी पड़ रहा था पर फिर भी उसके बड़े होने का एहसास कई गुना बड़ा था। सो ज्यों का ज्यों ही वह स्कूल के गेट के बाहर, आने जाने वाली दो सड़कों के बीच वाली पगडंडी पे टहल रहा था। धुल को स्कूल के काले जूतों से उड़ा कर वो उम्मीद कर रहा था नया आकर बनाने की जिसका कोई मतलब निकल सके। ठीक उन चित्रों की तरह जो उसकी किताबों में शामिल हैं। जिन्हे वो घंटो लम्बी क्लासों में देखता रहता था। उन चित्रों की परिभाषाएं थी मतलब थे। जिन्हे समझने के लिए टीचर रेडियो की तरह बजती रहती थी और कुछ लालायित बच्चे क्रिकेट कमेंट्री की तरह सुनते थे। ऐसा भी नहीं था के उसे ऐसी पढाई पसंद नहीं थी, बस उसे चित्र ज्यादा पसंद थे। मिसाल के तौर पे एक खाली पीरियड में जब टीचर ने सबको चित्र बनाने को बोला तो उसने "रेन वाटर हार्वेस्टिंग" वाला आधे पन्ने का सबसे कठिन चित्र उठाया। वो चित्र बनाने में उसे पूरे ३ पीरियड लगे। मगर उसने उसे पूरा जरूर करा। उस चित्र के लोग उसे बहूत असली जान पड़ते थे।

अपने बाबा के गाओं का कुआँ देख कर उसे हमेशा वो चित्र याद आता था। कुँए में झाक कर वो "वाटर साइकिल" वाले चित्र को याद करा करता था और फिर अपने गाओं वाले चचेरे भाई को पूरी ''वाटर साइकिल" समझाता था। ताकि उसे बता सके उस चित्र के बारे में। गाओं से याद आया की ये पिछले ही गर्मी की छुट्टी की बात थी। और कोट की गर्मी से एहसास हुआ की गर्मी फिर आ रही है। गर्मी पसंद नहीं हैं मगर गर्मी की छुट्टी तो है। उसका चेहरा चमक उठा और तुरंत उँगलियों पर गिन लिया के अभी भी ढाई महीने बाकि हैं, ये गिनती पांच  महीने से बेहतर है जो उसने आखरी बार गिनी थी। वो खुस था और जमीन पर बने आकर के बारे में पूरी तरह भूल चूका था। उसके दिमाग में वो कुआँ था जो आम के बाग के पास था। वैसे उसे गाओं जाना पसंद नहीं था। "गाओं में बिजली बराबर नहीं अति", "गाओं में टीवी नहीं है ","गाओं गन्दा है" । पर गाओं जाना उसकी मजबूरी थी, बाबा के चलते। गाओं गर्मी की छुट्टी थी।   गर्मी में कुँए के ठन्डे पानी को बाटली में भर के, बाग के आमों को उसमे धो के खाने का मजा कुछ और ही था। आम मीठे थे। भाई बेहेन का साथ भी मीठा। मीठी मीठी गर्मी, जैसे नानी की बनाई हुई आम की चटनी जो सबको पसंद थी खिचड़ी के साथ। नानी की बनाई हुई हरी खिचड़ी के साथ। जी हाँ हरी खिचड़ी। उसने आज तक हमेशा पिली खिचड़ी देखि थि मगर नानी हमेशा हरी खिचड़ी ही बनाती थी। ये बात उतनी ही अजीब थी जितना गोबर से मिट्टी के घर को साफ़ करना। गोबर शहरों में गन्दगी थी  जो यहाँ वहाँ सड़को पर गिरे मिल जाती थी। पर गाओं में वही गोबर घर साफ़ कैसे कर सकता है ये बात उसे ये कभी समझ नहीं आई। उसने अपने होठ के कोने पे चिपकी बची इमली को चाट लिया। वो खट्टी थी। आम के बीजों की तरह जो अंत में बच जाते हैं और उन्हें चाटते रहने पे खट्टापन बढ़ता जाता है।

सामने से एक ऑटो रफ़्तार पकडे निकल गया। उसमे बैठे एक लम्बे गोरे आदमी ने चश्मिशी निगाहों से उसे देखा। छड़ भर के लिए। बच्चे ने उसे नहीं देखा। वो जमीन की तरफ मुह करे जमीन देखता रहा। एक पत्ते की ओर।

वो सोच पड़ा। के उसने कहानी में सुना था की शेर कुँए में झाकता है और अपनी परछाईं देखता है। वो घंटों तक कुँए झाकता रहा पर उसे अपनी परछाईं कभी साफ नहीं दिखी। बहुत कुछ दिखा, झिलमिल झूलता हुआ, उसकी परछाईं से घुल मिल कर हिला हुआ, पर अपनी तस्वीर कभी साफ़ ना दिखी। इतने देर तक घूरने के बाद भी जब तस्वीर साफ ना दिखी, वो कहानी से नाराज हो गया। ऐसा भी नहीं था की उसे कहानियाँ पसंद नहीं थी। उसे कहानियाँ उतनी ही पसंद थी जितने के चित्र। और जब उसे मनचाहा चित्र नहीं दिखा तो वो नाराज़ हो गया। गुस्सा किसी पे तो निकलना था। वैसे उसकी भी गलती नहीं थी। उसने जिंदगी में अकेला वही पानी वाला कुआँ देखा था। बाकि जो भी कुँए देखे सब के सब सूखे। ऐसा हो सकता था के उसका कुआँ इतना गहरा हों की उसके पानी तक रौशनी पहुचती ही ना हों। पर वो ये समझना नहीं चाहता था। वो कहानी उसे बहुत प्रिय थी। खैर छोड़ो। इस ख्याल को झटकते हैं। उसने पास में पड़े एक सूखे गोबर के टुकड़े को लात मरी। वो टुकड़ा पास ही उगी छोटी जंगली झाड़ी से जा टकराया और एक नन्ही तितली उड़ पड़ी। तितली। तितली से उसे याद आई वो तितली जिसे उसने पानी पिलाने की कोशिश की थी। वो तितली उसके किताब के एक चित्र से हूबहू मिलती थी। उसे वो कुँए के पास ही गिरी मिली थी। जब उसके चचेरे भाई ने बोला "ये उड़ उड़ के थक गयी है यहाँ पानी पीने आई होगी,चलो उसे पानी पिलाते हैं"। उसने उसे अपने हाथों से पानी पिलाने की कोशिश करी और इसी कोशिश में उसे एहसास हुआ के तितलियों के होठ नहीं होते।होठ नहीं है? होठ नहीं है तो वो इमली कैसे चखती होगी। तितलियों को इमली का स्वाद नहीं पता? उसे इमली बहुत पसंद थी जिसे वो पैसे बचा के छुट्टी के बाद फेरीवाले से खरीद के खाया करता था। वो उदास हो गया। पाव के पास पड़े एक पत्ते को देखने लगा । वो पत्ता उसे एक शांत, चुप होठ सा दिख रहा था। हरे हरे होठ सा। जो अगर उस तितली के पास होता तो वो जिन्दा होती।

पास आ कर एक और ऑटो रुका। वो लड़का अपनी माँ को ऑटो में देख कर मुस्कुराया और दौड़ के ऑटो में चढ़ गया। फिर, फिर कुछ नहीं, अगले ख्याल में एक गरम हवा के झोके के साथ वो हरा पत्ता कहीं खो गया।